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यहाँ मैंने ज़िन्दगी को बहुत पास देखा है
हर भटकने वाले को यहीं आस-पास देखा है ।
हर मंज़र यहाँ हसीन, पर
हर दिल को उदास देखा है
यह शहर तो है इंसानों का
पर मैंने पत्थरों का अहसास देखा है
यहाँ मैंने ज़िन्दगी को बहुत पास देखा है ।
हर तरफ यहाँ मयखाना ही नज़र आता है
पर हर शय के होठों पर इक ‘भटकती’ प्यास देखा है
यहाँ कौन करता है दिल की बात “सरफ़रोश”
हर जज्बात को यहाँ हताश देखा है
यहाँ मैंने ज़िन्दगी को बहुत पास देखा है ।
लाख दुश्मन हो ज़माने की हवा, लेकिन
हर परिंदे को मिलाता हुआ उसका आकाश देखा है
यहाँ मैंने ज़िन्दगी को बहुत पास देखा है
हर भटकने वाले को यहीं आस-पास देखा है ।
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अक्सर ये टीस सी
उठती है दिल में
कब तलक भटकते रहेंगे
तलाश में अपनी मंजिल की
कब ख़त्म होगी ये भटकन…।
तमाम आशाओं निराशाओं
के बीच भटकती
कब तलक हिचकोले खाती रहेगी
ये जिंदगी…….।
रोज़ नए-नए सपने बनते हैं बिगड़ जाते हैं
इन्हीं बनते-बिगड़ते सपनों के बीच इक
रौशनी सी दिखाई देती है
उम्मीद की
कभी तो मिलेगी मेरी मंज़िल……….
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