- 16 Posts
- 517 Comments
हर राष्ट्र अपनी संस्कृति, अपनी भाषा , अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध होता है. परन्तु हमारे राष्ट्र में क्या हो रहा है? जो काम कभी विदेशी आक्रमण-कारियों ने किया वही काम हमारे अपने, इस देश के वे कर्णधार कर रहे है, “जिनको हमने इस देश की बाग-डोर सोंपी. जिन्हें हमने प्रतिष्ठित किया……जिन्हें हमने अपना माननीय बनाया”…वही लूट-खाशोट, वही अत्याचार, वही भ्रष्टाचार…….. हमारे इन कर्णधारों ने पहले हमें धर्म के आधार पर बांटा, फिर जाति के आधार पर बांटा. समाज में वैमनस्यता पैदा करने का काम किया. इन्हों ने भी वही नीति अपना रखी है, जो कभी अंग्रेज किया करते थे., बांटो और राज करो…
इनकी हिमाकत तो देखिये, ये देश के गद्दार… खुद को लोकतंत्र का रक्षक कहते हैं, और जो सच्चे, ईमानदार, राष्ट्र-भक्त हैं उन्हें देश-द्रोही, अलोकतांत्रिक करार देते हैं. अर्थात हम देश- हित की बात करते हैं तो देश-द्रोही. हम अपने समाज, अपनी संस्कृति की रक्षा की बात करें तो अलोकतांत्रिक. हम अपने सनातन धर्म की रक्षा की बात करें तो हमें दक्षिण-पंथी आतंकवादी घोषित किया जाता है. हमें चरम-पंथी कहा जाता है.
अर्थात हम इनका महिमा मंडन करें तो लोकतान्त्रिक. हम विदेशी संस्कृति का, विदेशी भाषा का,विदेशी खान-पान का,विदेशी आचार- व्यवहार का महिमामंडन करें तो लोकतान्त्रिक अन्यथा अलोकतांत्रिक……
विदेशियों ने तो हमें नष्ट करने के लिए ऐसा किया. वे हमारी संस्कृति में, हमारी भाषा में, हमारे समाज में विकृति पैदा करना चाहते थे. और उन्होंने ऐसा किया ….उनका तो उद्देश्य ही था ” बांटो और राज करो”……. जितना लूट सकते हो लूट लो……. कितनी शर्मनाक बात है कि वही कार्य हमारे अपने इस देश के कर्णधार कर रहे हैं. इनको इस देश से या फिर इस देश की संस्कृति की रक्षा से, संप्रभुता की रक्षा से कोई सरोकार नहीं है. ये विदेशियों के हाथों बिके हुए, अंग्रेज-परस्त लोग, इनका सिर्फ और सिर्फ एक ही मकसद है, इस देश को लूटना…….. इन्हीं की देन है जो आज देश में चारों तरफ लूट है….., अराजकता है…….अत्याचार है…., अशांति है………भ्रष्टाचार है……….देश में तो लूट मची ही हुयी है. हमारी संस्कृति पर भी कुठाराघात हो रहा है., समाज में विकृति पैदा की जा रही है.
इसके जिम्मेदार हम स्वयं भी हैं. कहने को तो हम स्वतंत्र हैं, परन्तु हम आज भी हम मानसिक रूप से इन स्वदेशी “विदेशियों” के सामने नतमस्तक हैं, परतंत्र हैं….हमने ही इनको यह ताकत दी है….. क्यों हमने इन्हें अपना रहनुमा बना दिया….. ? क्यों हम अपनी संस्कृति, अपने समाज में ज़हर घोलने दे रहे हैं….? क्यों हम इनके हाथ की कठपुतली बन गए हैं……? क्यों हम कायरों की तरह अपने इस देश को लुटते देख रहे हैं…..? क्यों हम अपने समाज को विद्ध्वंश होते देख रहे हैं…..? कहाँ गए हमारे वो आदर्श….? कहाँ गयी हमारी नैतिकता…….? कहाँ गए हमारे वो संस्कार……? जिस पर हमें कभी नाज़ था………
हमारे इन कर्णधारों ने तो अपना ज़मीर, अपना इमान बेंच दिया है…… क्या हम भी बिक चुके हैं……….? क्या हमारे भी जज्बात मर चुके हैं……..? अब बस…. बहुत हो चुका….. बहुत सो चुके….. समय आ गया है, जागने का….. देश- द्रोहियों को सबक सिखाने का…..हमारे समाज में, हमारी संस्कृति में विकृति पैदा करने वालों को सबक सिखाने का……इनको इनकी औकात दिखने का….. अपनी ताकत दिखाने का……बहुत विश्वास किया इन पर…….अब इन पर भरोसा नहीं रह गया है…..अब भी सजग हो जाओ….. अपने मूल्य को पहचानो…, अपने आप को पहचानो………तुम ही आजाद हो…. तुम ही भगत सिंह हो…… तुम ही लक्ष्मीबाई हो…… गाँधी जी के रूप में अन्ना और विवेकानंद जी के रूप में स्वामी रामदेव जी तो रण-क्षेत्र में आ चुके हैं…. ….. रणभेरी बज चुकी है……देश पुकार रहा है……..अब तुम्हारी बारी है….आगे बढ़ो…. अपने राष्ट्र की रक्षा के लिए….. अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए…….. अपने समाज की रक्षा के लिए……. अब यदि नहीं चेते तो वह दिन दूर नहीं….. जब हम पुनः गुलाम हो जायेंगे… आर्थिक रूप से गुलाम…… सामाजिक रूप से गुलाम…… सांस्कृतिक रूप से गुलाम……….
Read Comments