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दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन…………..
हाँ भैया…. बहुत भाग-दौड़ हो ली…
अब जा के फ़ुरसत मिली है…. अब तो यही गाने-गुनगनाने का मन कर रहा है….
जब से चुनाव का चक्कर लगा था, दम लेने की फ़ुरसत नहीं थी…
क्या-क्या नहीं करना पड़ा है, इस चुनाव के चक्कर में….
कितने पापड़ बेलने पड़े हैं, यह हमीं जानते हैं…
टिकट लेने से वोट लेने तक कितने करम करने पड़े हैं, यह हमीं जानते हैं…… कितनी गोड़-लगायी किये हैं यह हमीं जानते हैं… किसके-किसके पैर नहीं पड़े हैं… कहाँ- कहाँ माथा नहीं टेके हैं…
लोग तो समझते हैं कि हम तो बहुत ही ठाट से हैं…… अरे उ का जाने पीर पराई, जाके न फाटे पांव बेवाई…..
बहुत ही ‘कॉम्पटीशन’ हो गया है.. ज़रा सा चुके तो सारी मेहनत बेकार….
अपना काम तो हो गया है, बाकी सब ऊपर वाले के हाथ में है….. अब कौन हार-जीत का गुणा-गणित लगाने जाये…. जो होगा सो होगा……
अब कौन नतीजा के फेर में पड़ने जाये, हम तो भैया आराम के मूंड में हैं… जब नतीजा आएगा, तब की तब देखी जाएगी…
वैसे जीतेंगे हम ही.. हमारे गुरु जी हमको आशीर्वाद दिए हैं… उनका कहा कोई भी नहीं काट सकता… ब्रह्मा जी भी नहीं….
गुरु जी हमसे श्री श्री १०८ प्रदीप कुशवाहा जी उर्फ़ बाबा जी के द्वारा रचित ‘ भ्रष्ट मुनि’ की कथा का पाठ करने को बोले थे. हम तो रोज पांच-पांच बार पढ़े हैं…. गुरु जी बताये थे कि भ्रष्ट मुनि की कथा के पाठ से घर में समृद्धि आती है. कई पुश्तों का कल्याण हो जाता है.हमें तो भईया अपने गुरु जी पर पूरा भरोसा है….
जुग-जमाना भी कितना बदल गया है.नेकी का जमाना ही नहीं है…..
एक तो टिकट लेने के लिए पैसा खर्च करो, ऊपर से वोट लेने के लिए पैसा खर्च करो…..तुर्रा यह कि हम ही भ्रष्ट हैं…..
अरे दो पैसा हम बना ही लिए तो क्या गुनाह किये… आखिर हमारे बीबी-बच्चे नहीं हैं क्या…… सब तो अपने बीबी- बच्चों के लिए बनाते हैं……
अरे भ्रष्ट तो तुम लोग हो… चार-चार से पैसा लेते हो, वोट कहाँ दोगे इसका पता ही नहीं……. क्या नहीं किये हैं हम…. तुम लोगन के लिए…… बीबी को साड़ी दिए……, घर भर को मुर्गा खिलाये….., तुम सब को दारू दिए….., ऊपर से पैसा भी दिए…. आखिर यह पैसा कहाँ से आएगा……. हम कौनो पैसे का पेड़ थोड़े ही लगा रखे हैं…….
पहले के ज़माने में काम से काम यह खर्च तो नहीं ही था, अपने ही आदमी जाते थे सबका वोट डाल देते थे. इतनी झंझट तो नहीं ही थी…… .
अब तो पैसा भी दो और चिरौरी भी करो…. इ भ्रष्टन का कौनो भरोसा थोड़े ही रह गया है….. कब कहाँ पलट जाएँ कौनो ठिकाना थोड़े ही है….. बस इस बार जीत जाएँ… एक का दस बसूलेंगे….. और अपनी सरकार बन गयी तो सौ भी बसूलेंगे….. मौका बार-बार थोड़े ही आता है…
बड़े ईमानदार बने फिरते हैं… मौका नहीं मिला तो ईमानदारी का स्वांग रचाते हैं… कितने ईमानदार हैं, यह किसी से छिपा नहीं है……..पूरा का पूरा ग्रन्थ लिखा हुआ है…. चले हैं आन्दोलन करने …
अरे.. पहले अपने को तो सही करो, तब हमको सुधारना…
अरे बाप रे…..इ चुनाव के चक्कर में हम अपनी रमरतिया को तो भूल ही गए थे… अब भईया.. हम जा रहे हैं, अपनी रमरतिया के पास… वहीँ दो-चार दिन आराम से रहेंगे…. वहीँ अपनी थकान मिटायेंगे……… अब गिनती के दिन ही हाज़िर होंगे… जीत गए तो भला, नहीं तो पिछला दरवाज़ा तो है ही…….
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