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स्त्री न होती तो क्या होता? शायद यह सृष्टि नहीं होती. यह जीव जगत नहीं होता. हम नहीं होते. स्त्री जन्मदात्री है. सृष्टि की जननी है. जीव जगत की जननी है. हमारी जननी है. अनेकों पीड़ा को सहन करती है यह सबकी जननी.
ईश्वर की श्रेष्ठ कृति है ‘मनुष्य’. परन्तु इस मनुष्य समाज में स्त्रियों की क्या स्तिथि है? पश्चिम के देशों की बात ही छोडिये, हम तो स्त्रियों की पूजा करते थे या करते हैं. कभी दुर्गा के रूप में तो कभी काली के रूप में. कभी सरस्वती के रूप में तो कभी लक्ष्मी के रूप में. लेकिन हमारे समाज को क्या हो गया है? हम कहाँ भटक गए हैं? हम इतने विद्रूप और क्रूर क्यों हो गए हैं?
हमारे यहाँ कन्यायों की पूजा की जाती है तो दूसरी तरफ कन्या भ्रूण हत्या हो रही है, जन्म से पहले ही मर दिया जाता है. स्त्री स्वरुप की पूजा होती है तो दूसरी तरफ स्त्रियों का शोषण हो रहा है, उनके साथ दुर्व्यवहार होता है, जला दिया जाता है या फिर अपमानित किया जाता है. ऐसा दोहरा व्यव्हार क्यों? क्यों हम अपनी जननी के दुश्मन बन गए हैं? एक स्त्री ही तो हमारी माता होती है,बहन होती है, पत्नी होती है और पुत्री होती है.
शायद हम अपने संस्कारों को भूलते जा रहे हैं. अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं. आज आवश्यकता है सांस्कृतिक पुनर्जागरण की. अपने संस्कारों को पहचानने की, अपने मूल्यों को पहचानने की.
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